गुरू -
वह आंखों की पहुँच से परे है, आवाज़ से अनसुना, और मन से अगम्य। हमारी बुद्धि उसे समेट नहीं सकती, न ही हमारी समझ दूसरों के शब्दों से आकार ले सकती है। वह ज्ञात से अलग है और अज्ञात से परे है। ऐसा ज्ञान हमें हमारे आदरणीय शिक्षकों द्वारा प्रदान किया गया है, जिन्होंने उसके सार को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
Guru -
“He remains beyond the grasp of the eyes, inaudible to the voice, and unfathomable to the mind. Our wisdom cannot encompass Him, nor can our understanding be shaped by the words of others. He is separate from that which is familiar and transcends that which is yet to be discovered. Such knowledge has been imparted to us by our esteemed teachers, who have endeavored to elucidate His essence.”