कठोपनिषद
Kathopnishad


यम -
श्रेय और प्रेय ये दोनों ही मनुष्य के सामने आते है बुद्धिमान मनुष्य उन दोनों के स्वरूप पर भलीभाँति विचार करके उनको पृथक् - पृथक् समझ लेता है और वह श्रेष्ठबुद्धिमनुष्य परम कल्याण के साधन को ही भोग साधन की अपेक्षा श्रेष्ठ समझकर ग्रहण करता है परंतु मन्दबुद्धिवाला मनुष्य लौकिक योग क्षेमकी इच्छा से भोगों के साधन रूप प्रेय को अपनाता है

Yam -
Both credit and love come in front of a human being. An intelligent person thinks carefully about the nature of both and understands them separately and that person with great intelligence considers the means of ultimate welfare as better than the means of enjoyment, but the person with weak intelligence accepts worldly things. Yoga adopts love as a means of enjoyment with the desire for welfare.